मंदसौर / जिले के छोटे से ग्राम नगरी में किसान महेश धाकड़ और उनकी पत्नी ज्योति के घर 2 अक्टूबर 2025 को खुशियों का आगमन हुआ, नन्हा जीवार्थ जन्मा। लेकिन जन्म के साथ ही परिवार की खुशियाँ चिंता में बदल गईं। जीवार्थ को सांस लेने में दिक्कत थी, रो नहीं पा रहा था, और डॉक्टरों ने बताया कि उसे डायाफ्रामिक हर्निया (Diaphragmatic Hernia) नाम की गंभीर बीमारी है — एक ऐसी स्थिति जिसमें पेट के अंग छाती की गुहा में चले जाते हैं और बच्चे को सांस लेने में परेशानी होती है।

महेश, जो स्वयं एक छोटे किसान हैं, के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी — अपने बेटे को बचाना। आर्थिक स्थिति कमजोर थी, पर बेटे की जिंदगी से बड़ा कुछ नहीं था। उन्होंने बेटे को तुरंत इंदौर के एक निजी अस्पताल वी-वन हॉस्पिटल में भर्ती कराया। डॉक्टरों ने बताया कि इलाज संभव है, लेकिन खर्च काफी अधिक आएगा।

उधर पिता महेश के दिल में एक ही बात थी — “किसी भी हाल में मेरे बेटे को ठीक करना है।” उन्होंने हर दरवाज़े पर दस्तक दी। इसी बीच उन्हें पता चला कि मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान योजना के तहत गंभीर बीमार बच्चों के इलाज के लिए आर्थिक सहायता मिलती है।

महेश ने आवेदन किया — और जैसे ईश्वर ने सुन लिया हो, सरकार की ओर से उन्हें 1,50,000 की सहायता राशि स्वीकृत हुई। यही राशि उनके बेटे के उपचार के लिए जीवनरेखा बन गई। इलाज शुरू हुआ, ऑपरेशन सफल रहा, और कुछ ही दिनों में नन्हा जीवार्थ मुस्कुराने लगा।

आज जीवार्थ स्वस्थ है, उसकी किलकारियाँ पूरे घर में गूंजती हैं। पिता महेश की आँखों में अब राहत और कृतज्ञता है। वे कहते हैं — मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव जी का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। सरकार की सहायता से ही मेरा बेटा आज हमारे साथ है।