<p>&nbsp;</p><h3>श्री नागेश्वर तीर्थ पर गुरुभक्ति, श्रद्धा और संस्कारों का बना अद्भुत संगम</h3><p><strong>आलोट /दुर्गाशंकर पहाड़िया/ उन्हैल (</strong> राजस्थान ) जीवन में यदि गुरु की कृपा का पात्र बनना है तो उनके समक्ष तर्क नहीं, बल्कि समर्पण का भाव होना चाहिए। ज्ञान और शिक्षा की पहली शर्त विनय एवं विवेक है। संस्कारों की भूमि पर ही सद्विचार स्थापित हो सकते हैं। यदि गुरु के प्रति आस्था है तो अंधकार में भी जीवन का मार्ग प्रकाशित हो जाता है।<br>यह प्रेरक विचार आचार्य सागर चंद्रसागर सूरीश्वर मसा ने तीर्थोद्धारक परम पूज्य पंन्यास गुरुदेव अभयसागर महाराज की 39वीं पुण्यतिथि पर आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा श्री नागेश्वर तीर्थ परिसर में आचार्य अशोकसागर सूरीश्वर मसा आदि ठाणा की पावन निश्रा में संपन्न हुई।</p><p>आचार्य सागर चंद्रसागर ने कहा कि गुरुदेव अभयसागर महाराज की कर्मभूमि मालव क्षेत्र रही है, जहां उन्होंने घोर साधना से प्राप्त दैविक शक्तियों द्वारा धर्म शासन की स्थापना की। विश्व प्रसिद्ध श्री नागेश्वर तीर्थ की गवेषणा और इसके पुनरुत्थान में भी गुरुदेव का योगदान अविस्मरणीय रहा।</p><p>धर्मसभा में आचार्य सौम्यचंद्रसागर सूरीश्वर मसा, आचार्य विवेकचंद्रसागर सूरीश्वर मसा, प्रवर्तक मुनिराज धैर्यचंद्रसागर मसा, गणिवर्य तीर्थचंद्रसागर मसा, गणिवर्य मोक्षचंद्रसागर मसा एवं डॉ. वैराग्यचंद्रसागर मसा सहित साध्वी स्मितदर्शिता मसा आदि ठाणा की पावन निश्रा रही।</p><p>कार्यक्रम में स्थानीय श्रीसंघ सहित आलोट, महिदपुर, उज्जैन, भवानीमंडी, रामगंजमंडी, कस्बा उन्हैल, मंदसौर आदि नगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए।<br>आयोजन के तहत गुरुदेव अभयसागर की चरण पादुका की अष्टप्रकारी पूजा धींग परिवार द्वारा की गई। तीर्थ परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं ने चरण पादुका की 3600 परिक्रमाएं कीं। गुरुदेव के देवलोक गमन की स्मृति में सायं 4 बजकर 32 मिनट पर आचार्य श्री द्वारा वासक्षेप कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।</p>