<p>&nbsp; <strong>(ब्रजेश जोशी)&nbsp;</strong><br>मंदसौर। सुविख्यात गायक कैलाश खेर के मंदसौर में पशुपतिनाथ मेले के सांस्कृतिक मंच पर किया गया बर्ताव बहुत चर्चित हो रहा है। उन्होंने मंच से अपनी तुन्नक में कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग किया जो मंदसौर की जनता और मेला आयोजक नगर पालिका परिषद के लिए अपमानजनक है। जैसे जनता को गरीब कहना आयोजको को कंजूस कहना.. जनप्रतिनिधियों के लिए भी कुछ भी कह देना..!<br>मीडिया और सोशल मीडिया में कैलाश खेर को &nbsp;खूब ट्रोल किया गया है।&nbsp;<br>इस विषय में मेरी कुछ समाजशास्त्रियों,मनोवैज्ञानिकों और तर्कशास्त्रियों से बात हुई।&nbsp;<br>उनसे हुई चर्चा का सार इस आलेख में मैं क्रमशः प्रस्तुत कर रहा हूं।</p><p>पाठक गण गौर करें...<br><strong>समाज शास्त्री कहते हैं प्रतिभा ओर प्रवृत्ति में अंतर होता है</strong><br>समाज शास्त्रियों का कहना है कि प्रतिभा और प्रवृत्ति में बड़ा अंतर होता है व्यक्ति के अंदर कला के तत्व और प्रतिभा है यह उसका प्रारब्ध है लेकिन उसकी प्रवृत्ति जरूरी नहीं कि उतनी ही अच्छी हो जितनी अच्छी उसकी प्रतिभा या कला है ..कैलाश खेर के साथ यही देखा गया है उन्होंने अपनी कला को साधा और प्रतिभा से बहुत बड़ा मुकाम पाया है लेकिन जो प्रवृत्ति उनकी है वह भी अपनी जगह यथावत है। प्राय: इस तरह के लोग अपनी चरम सफलता से इतने बोरा जाते हैं कि कि वे समझते हैं कि यह पूरा जहां उन्हीं के तरीके से चल रहा है वह जो चाहे बोल सकते हैं कहीं भी कुछ भी कह सकते हैं क्योंकि वह एक सफलतम व्यक्तित्व हैं। कैलाश खेर ने भी अपनी प्रवृत्ति या कहना चाहिए दुष्प्रवृत्ति के चलते इस तरह के शब्दों का उपयोग किया है इसमें उनका अहंकार भी है और स्वयं को अन्यों से श्रेष्ठ होने का दंभ भी । समाजशास्त्री कहते हैं कि कैलाश खेर जैसे व्यक्ति एक अच्छे कलाकार हो सकते हैं लेकिन अभी एक अच्छा इंसान बनना उनका बाकी है।</p><p><strong>मनोवैज्ञानिकों का मानना है ये उनका फस्ट्रेशन था-&nbsp;</strong><br>अब आते हैं मनोवैज्ञानिकों की बात पर इनका कहना है कि इतने बड़े कलाकार का ऐसे शब्दों का प्रयोग करना और अपनों के आगे अन्यों को कुछ भी नहीं समझना और उनका उपहास करना कहीं ना कहीं ये &nbsp;उनके फ्रस्ट्रेशन का भी एक कारण हो सकता है वह इसलिए कि जिस तरह बहुत अधिक पैसे कमाने वाले व्यक्ति की ओर अधिक से अधिक पैसा कमाने की अंदर की लालसा या लालच कम नहीं होता ठीक उसी तरह प्रसिद्धि के चरम पर बैठे व्यक्ति को ऐसा लगता है कि अभी उसे और अधिक ऊंचाई चाहिए और अधिक प्रसिद्धि चाहिए जो उसे मिल नहीं रही..इसलिए वे ऐसा व्यवहार कर अपना फस्ट्रेशन निकालते हैं।<br>उदाहरण के तौर पर बताया गया कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन अपनी कला और प्रतिभा से फिल्म इंडस्ट्री के बादशाह हैं लेकिन उनके नजदीकी सूत्र बताते हैं कि उनकी भी प्रवृत्ति में रील और रियल दोनों लाईफ बहुत अलग हैं। पर्दे पर वे जितने सुसंस्कृत और सहज सरल &nbsp;दिखते हैं वास्तविक जिंदगी में वे बहुत अलग है। आम प्रशंसक तो ठीक अपने साथी कलाकारों के प्रति भी कई बार &nbsp;उनका व्यवहार अहंकारी और रुखा सा होता है। उनके बारे में एक वाकया बताते हैं कि फिल्म शोले जो कि अब तक की सबसे सुपर डुपर फिल्म है और इसके हर कलाकार ने अपने किरदार से प्रसिद्धि पाई है और गब्बर का रोल निभाने वाले अमजद खान की लोकप्रियता तो खलनायक होते हुए भी किसी नायक से कम नहीं थी लेकिन बताते हैं कि शोले फिल्म के बाद अमिताभ बच्चन की बढ़ती सफलता ने उन्हें इतना आत्ममुग्ध ओर अहंकारी बना दिया कि अमजद खान को उनसे किसी काम से मिलना था लेकिन 10 बार के प्रयासों के बाद भी अमिताभ ने उन्हें समय नहीं दिया यहां तक कि बंगले में मौजूद होते हुए उनसे नहीं मिले.. इससे अमजद खान इतने उद्वेलित हुए कि उन्होंने अब उनसे कभी न मिलने की कसम खाई और बाद में तो वे असमय दुनिया से ही चल बसे।&nbsp;<br>इसी तरह स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर जो की कंठ कोकिला के रूप में पूरी दुनिया में प्रसिद्धि के चरम पर पहुंची लेकिन उनमें भी सहृदयता की कमी थी वे अन्य कलाकारों को बिल्कुल भी तरजीह नहीं देती थी यहां तक की अपनी सगी बहन आशा भोसले से भी उनके व्यावसायिक तनाव चले मोहम्मद रफी जैसे साथी गायक के साथ भी उनका बुरा बर्ताव चर्चाओं में शुमार रहा। कहा जाता है कि अमिताभ ओर लता मंगेशकर &nbsp;की प्रवृत्ति कई अन्य कलाकारों की कुर्बानियों का कारण भी बनी.. इन्होंने कई कलाकारों को पनपने नहीं दिया।<br>कमोबेश यही बात कई सफल राजनेताओं के लिए भी कही जाती है लालू यादव भले ही आज गर्दिश में है लेकिन एक समय उनका भी परवान पर रहा है बताया जाता है वे कोई कार्यकर्ता उनके चरण स्पर्श भी करता तो उसका सम्मान स्वीकार करना तो दूर उसे देखते तक नहीं थे।<br>&nbsp;</p><p><strong>तर्कशास्त्री के कथनानुसार उनने कुछ भी गलत नहीं किया- </strong>अब बात करें तर्कशास्त्रियों की तो कैलाश खेर के मंदसौर के मेले के मंच पर किए गए बर्ताव पर उनका कहना है कि उन्हें इतने ट्रोल करने की कोई जरूरत नहीं गरीब और कंजूस जैसे शब्दों का उपयोग उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से किया यानी ताली बजाने में गरीबी या कंजूसी ना दिखाएं.. जहां तक जन प्रतिनिधियों के लिए जो व्यंग उन्होंने किए वह सहज है बड़े कलाकार मंच पर प्राय: ऐसा उपहास करते हैं जिसे गंभीरता से नहीं लिया जाता ये एक तरह का वाणी विलास है जो सफल व्यक्ति करते हैं यानी तर्कशास्त्रियों के अनुसार तो कैलाश खेर ने ऐसा कुछ नहीं किया कि उनकी इतनी आलोचना की जाए या मीडिया में इतना ट्रोल किया जाए।<br>बरहाल यह तमाम धारणाएं अपने-अपने दृष्टिकोण से है&nbsp;<br>लेकिन सार यही है कि यदि प्रकृति दत्त प्रतिभा किसी भी कलाकार में है तो उसे एक अच्छे कलाकार के साथ अच्छा इन्सान भी बनना चाहिए।</p>